शनिवार, 26 अगस्त 2017

तेरे आँसुओं को ज़ाम लिखता हूँ..
तेरे गेशूओ को इन्कलाब लिखता हूँ
चाहे  मुकदमा हो मुझपे दिल - ऐ - अदालत में..
तू मेरी है मै तेरा हूँ ये ऐलान करता  हूँ..!!
Rahul@vats 

अर्ज किया है कि.. आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
बाकी सब बेगाने सिर्फ आप अपने लगते हैं..
इश्क के जुमले छोड़ गली के चौराहे पे आ जा..
आपके जुबां से तो सियासी बयान ही अच्छे लगते हैं ...
Rahul@vats 

मेरी हर साँस  में तुम हो , हर इक अल्फाज़ में तुम हो ...

मेरी हर साज में तुम हो ..हर इक  सुर ताल में तुम हो ...
तुम्हें जो  गुनगुनाऊ मै हर इक  महफिल मुसायरे में...

मेरी हर आह में तुम हो .. मेरी हर वाह में तुम हो ... rahul@vats


तेरी आँखो में महताब बसता है....!
तेरी जेहन में आफताब बसता है..!!
तू भले ही अंजान मेरे हर ज़र्रे से...!
मेरी आहों मे तू.. मेरी आँखो में तेरा ख्वाब बसता है..!! Rahul@vats

कुछ टूटे तराने तेरे नाम करता हूँ
एक और हसीं शाम तेरे नाम करता हूँ
इन छलकते पैमानों की बेकशी से पूछ
ज़ाम का हर एक कतरा तेरे नाम करता हूँ rahul@vats 

अधूरा ज़ाम, अधूरा इश्क दिलों में एक टीस छोड़ जाती है ..!!
तबायफ भी कोठे की बख्शीश छोड़ जाती है.. !!
इश्क के नाम पे दिलों से खेलने वाले थोड़ी सी गैरत जरूरी है..!
गैरों के जनाजे भी आँखो में अश्क के दो बूंद छोड़ जाती है....!! Rahul@vats 

तेरी इबादत करता हूँ, सज़दा नहीं करता..! 
तेरी हिफाज़त करता हूँ, बगावत नहीं करता..!! 
कुछ उम्मीदें जो टूटी है मना ले उसे..!
मै तुमसे प्यार करता हूँ, एतवार नहीं करता..!
Rahul@vats 

इश्क़ के नाम पे जिस्‍म ने, ये कैसा आँचल ओढ़ा है..?
पायल की झनकार भी अब बेशक छुप छुप के रोया है..!
ये प्यार है कि आग है... जो यौवन जलाती है फकत... तूफ़ां मे हमराज़ थे हम, साहिल पे ये कैसे मुह मोड़ा है..!!!
Rahul@vats 

कुछ उम्मीदें जो बची, आज वो भी टूट गई.
कुछ सपने जो सजाए थे, आज वो भी रूठ गई..
प्यार तो तुम्हें दिल अब भी बहुत करता है ग़ालिब
बस कुछ अपने जो कमाए थे आज वो अपने पीछे छूट गए
Rahul@vats 

मुझे तलाश है उस महफिल की जहां टूटे दिल मिलते है
सुना है कि अक्सर उस महफिल मे  जिंदा दिल मिलते हैं....!
Rahul@vats 

मैं....!!??

मै कौन हूँ....?
एक बटोही जो रास्ता भूल गया है.!
या एक लहर जो किनारा भूल गया है..!
पतवार के बिना एक नाव कहू ..
य़ा एक रात जो सवेरा भूल गया है...!!

कौन हूँ मै...?
एक अधूरी शायरी कहू तो गलत ना होगा,
कुदरत की शरारत कहू तो गलत ना होगा
अनकही अल्फाज़ कहे तो वो भी चलेगा
अधूरी डायरी कहे तो गलत ना होगा..

क्या हूँ मै....?
शायद एक आशिक हूँ, जिसका इश्क अधूरा रह गया
या एक साहिल कहूं, जिसका लहर से नाता टूट गया..!!

एक ख्वाब हूँ मै अपने दिल की
एक लम्हा हूँ बीते कल की...!
तन्हाई हूँ मै अब तक की
रूसवाई हूँ सबके दिल की...!!

मै कौन हूँ..? क्या हूँ मै..?
बतला दे मुझे कोई कौन हूँ मै..??
Rahul@vats 

रविवार, 6 अगस्त 2017

मुरझाया फूल

था कली के रूप शैशव में‚ अहो सूखे सुमन
हास्य करता था‚ खिलाती अंक में तुझको पवन
खिल गया जब पूर्ण तू मंजुल‚ सुकोमल पुष्पवर
लुब्ध मधु के हेतु मंडराते लगे आने भ्रमर।
स्निग्ध किरणे चंद्र की तुझको हंसातीं थीं सदा
रात तुझ पर वारती थी मोतियों की संपदा
लोरियां गा कर मधुप निंद्रा–विवश करते तुझे
यत्न माली का रहा आनंद से भरता तुझे।
कर रहा अठखेलियां इतरा सदा उद्यान में
अंत का यह दृश्य आया था कभी क्या ध्यान में ?
सो रहा अब तू धरा पर‚ शुष्क बिखराया हुआ
गंध कोमलता नहीं‚ मुख मंजु मुरझाया हुआ।
आज तुझको देख कर चाहक भ्रमर आता नहीं
लाल अपना राग तुझ पर प्रात बरसाता नहीं
जिस पवन नें अंक में ले प्यार तुझको था किया
तीव्र झोकों से सुला उसने तुझे भू पर दिया।
कर दिया मधु और सौरभ दान सारा एक दिन
किंतु रोता कौन है तेरे लिये दानी सुमन
मत व्यथित हो फूल‚ सुख किसको दिया संसार ने
स्वार्थमय सबको बनाया है यहां करतार ने।
विश्व में हे फूल! सबके हृदय तू भाता रहा
दान कर सर्वस्व फिर भी हाय! हर्षाता रहा
जब न तेरी ही दशा पर दुख हुआ संसार को
कौन रोएगा सुमन! हम से मनुज निःसार को।

∼ महादेवी वर्मा


शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

प्यार उन्हें बेहद मंजूर था
लेकिन प्यार में मेरी जद मंजूर था...
उन्हे कोई बताए कि उनकी हद क्या है...
 मुझे खामखा उनकी प्यार के लिए हर गम मंजूर था... rahul@vats

जो था किस्मत को मंजूर उसका हकदार बना दिया .....!
माना कि बेवफ़ा है वो ..उसके आँसुओं ने कर्जदार बना दिया ...!!
जी चाहता है कि पोंछ लू उसके आँसू अपने पलकों से .....!
ऐ मोहब्बत तूने मुझे उनका गुलाम बना दिया ...!!
                                                            Rahul@vats

मधुयामिनी

तन चंदन सा जुल्फ घटा सा..!
मै विषधर सा लिपट रहा था..!!
हमारे लव से लव मिले जब..!
अनंत सागर सिमट रहा था..!!
तन चंदन सा.........

थी सुर्ख आँखे.. हँसी लवो पे.. !!
चाँद सा मुखड़ा चमक रहा था.. !!
था कुल समर्पण भाव उनका...
स्नेह सिंधु सब बरस रहा था.. !! तन चंदन सा........


साँस से शोला.. तन से पयोदर...!
 मुख से सबनम बरस रहा था...!!
दंश सह के भी मुस्कुरा के....!
सर्वस्व अर्पण वो कर रहे थे... !! तन चंदन सा....


थी रात प्यारी पूर्णिमा की..
इंद्र घटा भी गरज़ रहा था..!!
था  माँह सावन बेकशी का...,!
दो जिस्म जाँ एक हो रहे थे...!! तन चंदन सा ..... !!
मै विषधर सा.......!!
                          rahul@vats