सोमवार, 27 मार्च 2017

आशिकी


Rahul kumar
New Delhi..
8802969607

अरे सुनो .......कुछ हाल सुनाओ उनकी कयामत बाहो का..
सुना है लोग उनकी बाहो मे मरने को तरसते है .....
सुना है उनकी ज़ुलफ़े जब लहराती हैं तो बादल बन बरसती है....
सुना है  उनकी हर मुस्कान पे दीवाने जां तक लुटाते है ..
सुना है उनके चलने से  ....राहो में दीवानों की महफिल लग जाती है ....
सुना है उनकी पलको के साए में परवाने दिल्लगी  का आलाप गाते हैं.. ....
कल तो हद हो गई .......एक जनाजे को जां छू गई ....
उसे मुवक्किल जमाने में ....जीने की वजह मिल गई ....
यार सुनो .....ले चलो हमे भी उनकी गलीओ मे ....
सुना है कोई खाली नहीं लौट ता उनकी महफिल से ....
मारहम्-ए-बफा के लगा दे मुझे भी गर ....
जीने की वजह दिला दे इस जालिम जमाने में ...
सुना है वो आँखो से मय पिलाती है ....
कर दे बेहोश हमे भी साकी ...पीला दे पूरी पैमाने से ..!
खो जाऊ बस तब  ख्वाब मे उसके ..यही आस है बस अब खुदाई से .......!



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शुक्रवार, 24 मार्च 2017

पापा

Rahul kumar,
New Delhi,
8802969607

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चेहरे पे सूनापन.... आँखो में खालीपन.... गालो पे झुर्रियां.....सिकुरे ललाट..... सफेद बाल...आवाज़ में एक अजीब सी निरासा..... जिसके लिय मेरे पास शब्द नहीं है...... और अपनी हर बात को जोरदार बनाने के लिय थोरा गुस्से का मसाला..... सालो बीत गए मैंने उनके चेहरे पे हँसी नहीं देखी....... खुशी से ठहाके लगाते नहीं देखा मैंने अपने याद में ....... ऐसा लग रहा है कि जिम्मेदारियों का बोझ जिंदगी के हर रंग को धूमिल करता जा रहा है ....... जब कभी वो अकेले बैठे होते है.... तो अपने ही खयालो मे शून्य में खोए रहते है मानो कोई योगी अपने जिंदगी का सबसे बड़े तप मे लीन हो.... आज इस उम्र मे भला कौन  अपनी आजीबिका जुटाता है ....... जिस उम्र में लोग चारो धाम की यात्रा पर निकलते है..... उस उम्र में ये जिम्मेदारियों की आंच में अपने बाल सफेद कर रहे....... अजीब विडम्बना है ईश्वर की ......कोई जिंदगी जीने को मर रहा......... तो...... किसी के पास जिंदगी जीने का वक्त नहीं......!
लेकिन क्या ईश्वर है इन सब का जिम्मेदार...... या हम इंसानो ने ही बनाये ऐसे रिवाज.......... जो तोर देता बुढ़ापे का भी कमर.........! एक अंतिम ख्वाइस बची है अब.......ना हो कोई अब पिता लाचार...... मिले इन्हे सब सुख संसार.....बने सब कमर बुढ़ापे की..... . हर घर मे हो एक श्रवण कुमार......!

मंगलवार, 21 मार्च 2017

जिंदगी


कसम्कश मे जीने लगे है अब.....
पानी से प्यास बुझती नहीं..... कुछ और की आदत नहीं.....
या ख़ुदा हो जाऊ गर फना भी अब...... उनकी यादो मे ....
अश्क तो हो आँखो में ... पर सिसकिया सुनाई ना दे ...
क्यू ...?
फिकर इस बात का है ..... गर देख ले अश्क वो मेरी  आंखो में .....!
कही पलट ना आए मेरी बाहो मे ....
हो जाएगी बेवफ़ाई अपनो से..... Benakth बेमूअक्कील जमानो मे!......

सोमवार, 20 मार्च 2017

अधूरी कहानी


आज मुद्दत बाद दिल ने फिर कागज और कलम की ओर रुख किया......
होठो ने बुदबुदाया...... दिल थोड़ा तेज धड़का  और हाथो ने उसका साथ दिया......
लेकिन ये क्या.... अभी कुछ  सवालआत को ही पन्नो पे बिखेरा था ......
की आँसू ने आँखो का साथ छोड़  दिया ..... .
गालों के रास्ते होठो को भिगोया.... और होठो ने बुदबुदाना छोड़  दिया......
पर दिल को शायद इसकी खबर ना थी .... शायद इसीलिए उसने धड़कना   नहीं छोड़ा  .....!
अब  दिमाग की बारी थी......
हजारो सवालआत लिय कोरे पन्नो पे मौजूद हुआ .....,!
लेकिन सवालो की आहट से दिल बिखरने लगा ... दर्द सवरने लगा .....!
यादो की बारात  एक बार फिर निकल परी .....
लम्हों  के गलियारे से.......,!
कंठो ने शब्दों  का साथ छोड़  दिया .... पलको ने आँसू का साथ छोड़  दिया ... एक बार मै फिर अपने सजाए सपनो की गोद में  सो गया ....!
rahul@vats
BY:RAHUL Kumar, 8.02.2017
8802969607