गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

ज़किर खान (मेरे कुछ सवाल हैं....)

मेरे कुछ सवाल है जो सिर्फ क़यामत के रोज पूछूँगा तुमसे ,
क्यूकी उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम …



मैं जानना चाहता हूँ क्या रक़ीब के साथ भी चलते हुए ,
शाम को यूँही बेख्‍याली मैं उसके साथ भी क्या हाथ टकरा जाता है क्या तुम्हारा ?

क्या अपनी छोटी उँगली से उसका भी हाथ थाम लिया करती हो तुम ,
क्या वैसे है जैसे मेरा थामा करती थी …?

क्या बता दी सारी बचपन की कहानियां तुमने उसको जैसे मुझको रात रात भर बैठ कर सुनाई थी तुमने …?

क्या तुमने बताया उसको की 30 के आगे की हिन्दी की गिनती आती नहीं तुमको …?

वो जो सारी तस्वीरें तुम्हारे पापा के साथ , तुम्हारी बहन ke साथ तुम्हारी थी , जिनमे तुम मुझे बड़ी प्यारी लग रही हो,
क्या उसे भी दिखा दी तुमने …?

 कुछ सवाल है जो सिर्फ क़यामत के रोज पूछूँगा तुमसे ,
क्यूकी उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम

के मैं पूछना चाहता हूँ क्या जब वो भी घर छोड़ने आता है तुमको,
तो क्या सीढ़ियों पे आँखें मीच कर मेरी ही तरह उसके सामने भी माथा आगे कर देती हो तुम,
वैसे ही जैसे मेरे सामने किया करती थी ?

क्या सर्द रातों में बंद कमरों में वो भी मेरी ही तरह ,
तुम्हारी नंगी पीठ पर अपनी उँगलियों से हर्फ दर हर्फ खुद का नाम गोदता है ,
और तुम भी अक्षर-बा-अक्षर पहचानने की कोशिश करती हो क्या जैसे मेरे साथ किया करती थी …?


कुछ सवाल है जो सिर्फ क़यामत के रोज पूछूँगा तुमसे ,
क्यूकी उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके इस लायक नहीं हो तुम …



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