जिंदगी एक सुनसान हवेली सी थी..
थोड़ी उलझी हुई इक पहेली सी थी...
वक्त को मुझपे शायद तरस आ गया...
मेरी वीरान जहां मे तुम्हें ला दिया....
तुमसे मिला तुमसे नज़रे मिली...
फिर लव मिला, तुमसे दिल मिल गई..
फिर बहकने लगा, पर संभलने लगा..
सातो जन्मों का ख्वाब फिर मै बुनने लगा....
अब सुनसान राते चहकने लगी..
ये बेजान दिल फिर बहकने लगा...
हर सुबह का इंतज़ार करने लगा...
तुझको इक बार देखने को तरसने लगा..
मेरी बेरंग दुनिया रंगीन हो गई..
मै था तन्हा.. अब रातें नशीं हो गई..
पर अब धड़कन बेवक्त धड़कने लगा..
कुछ खोने का डर मुझको होने लगा.
पर इसकी खबर तुम्हें भी तो थी..??
कुछ खोने का डर तुम्हें भी तो था...??
तेरी मासूमियत मुझे वो सब कह गई...
मेरे सारे प्रश्नो का हल कर गई...
सपने सजाए घरोंदे बनाए...
हर मुश्किल में साथ निभाए...
पर शायद मै कमजोर था...
तेरे कंधो पे शायद अधिक बोझ था...
मै टूटने लगा... तू छूटने लगी..
कुछ सपने कुछ अपने बिखरने लगे...
कुछ अपने... जो वाकई अपने ना थे..
वो अपने अब हमदर्द बनने लगे...
तू अपनों के संग जो अब हो चली...
मै तन्हा अकेला सा अब हो चला..
तू ना सही, तेरी यादे सही....
मेरी जेहन से लिपटी हर सांसे तेरी..
जी लूँगा अब इसके सहारे ही मै...
कम है ये जिंदगी, अगले जन्मों मे भी....!!!!