शनिवार, 13 जून 2020

ख्वाहिश

10 मई 2016, हम सभी दोस्त दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावास के प्रांगण मे बैठे बातचीत कर रहे थे, या यूं कहें हर शाम की तरह चाय पर चर्चा हो रही थी..! चूँकि दिन था मातृ दिवस का, तो हर कोई भावनाओं के सरोवर मे गोते लगा रहा था. किसी को माँ की डांट याद आ रही थी, तो किसी को माँ का प्यार, रोहन मेरी ओर इशारा करते हुए कहा, क्यूँ शायर साहब, माँ पर कोई गज़ल नहीं सुनाओगे,..??
मैंने कहा आदरणीय मुनव्वर राणा साहब ने कुछ छोड़ा ही नहीं है अब माँ पर लिखने के लिए...! मजाकिया लहजे मे कहा उसने की ठीक है फिर जगाओ अपने अंदर के आदरणीय मुनव्वर राणा साहब को..! मैंने कहा अर्ज़ किया है फिर, उम्मीद है आप सब की संवेदनाओं पर दस्तक देगा...! गौर फर्माइएगा...


चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है 

मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है 

                                     (मुनव्वर राणा) 


सब वाह वाह करने लगे..... इतने मे एक लड़का जो वहाँ के कैन्टीन मे काम करता था, चाय की खाली ग्लास उठाते हुए कहा, शायर साहब, "मैंने जन्नत तो देखी है माँ नहीं देखी है"..…! 
सब अचानक स्तब्ध हो गए..! हमारे बीच का कोलाहल अचानक सन्नाटे मे तब्दील हो गया..! हम सब एक दूसरे के तरफ निःशब्द देखने लगे..! मैंने बहुत ही दबे आवाज मे कहा i am.... i am.... Sorryyyy यार.... I didn't mean.... मुझे बीच मे रोकते हुए, एक छोटी सी मुस्कान के साथ... अरे नहीं भैया, मेरी माँ जिन्दा है, स्वस्थ है, और बहुत खुशी खुशी अपना जीवन व्यतित कर रही है..! और अल्लाह ताला से उनकी लंबी उमर की दुआ करता हूँ, अल्लाह बरकत नवाजे उन्हें..! उसकी बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया, और हज़ारों सवाल मेरे अंतर्मन मे कौंधने लगा, क्यूँकी उसकी निराश आँखें उसके शब्दों की गवाही नहीं दे रहा था...!!

मैंने पूछा फिर तुमने ऐसा क्यूँ कहा कि, तुमने जन्नत तो देखी है माँ नहीं देखी...! वो मजाकिया लहजे मे इंकार करने लगा, कहने लगा कि जाने दो भैया, लंबी कहानी है..! मेरे बहुत insist करने पर वो वहीँ सामने पड़ा एक पत्थर पर बैठ गया..! कुछ देर तक यूँ ही खामोश पत्थर पर पत्थर बना बैठा रहा..! और शून्य मे देखते हुए अचानक बोल उठा, मेरे अब्बू ने दो शादियाँ की है..! मेरी अम्मी मेरे जन्म के एक महीने के बाद ही घर छोड़ कर चली गई..! सब कहते हैं मेरी अम्मी बहुत खूबसूरत थी..! वैसे अम्मी खूबसूरत ही होती है..! पर अब्बू के साथ उनकी बिल्कुल नहीं बनती थी..! अम्मी के घर छोड़ के जाने के बाद अब्बू ने दूसरी निकाह कर ली, और नई अम्मी के आने के बाद मेरी परवरिश की जिम्मेदारी मेरी खाला के हाथों मे सौंप दी गई..!

जब मैं लगभग 10 साल का हुआ, जब मुझे समाज के ताने-वाने व उलाहने का मतलब समझ मे आया तो मैंने अपनी खाला से अपनी अम्मी के बारे मे पूछा...! पर खाला ने कुछ भी बताने से साफ इंकार कर दिया..! बहुत पता करने के बाद पता चला कि उन्होंने भी दूसरी निकाह कर ली है और अभी अपने शौहर और दो बच्चों के साथ बहुत खुशी पूर्वक अपना जीवन व्यतित कर रहीं हैं..!

वैसे होश सम्भालने के बाद कभी कभी अब्बू से मिलना हो जाता था..! वो हर महीने मेरी परवरिश के लिय पैसे भेजते थे, मेरी परवरिश मे कोई आर्थिक कमी नहीं होने दी उन्होंने..! बस मेरा उनके पास होना उन्हें मंजूर नहीं था, कि शायद फिर मैं उनके और नई अम्मी के बीच कोई फसाद की वजह ना बन जाऊँ..! अब्बू को ये भी लगता है कि शायद मेरी ही वजह से अम्मी छोड़ गई उनको..!!

जब भी फिल्म मे माँ बेटे के प्यार को देखता था तो अपने आप ही आंसू मेरे पालकों का साथ छोड़ देता था, फिल्म के उस तरह का दृश्य मेरे मन मस्तिष्क पर हमेशा छाया होता था...! कि दस साल बाद कोई बेटा अपनी माँ से जब मिलता है, तो माँ उसे गले लगा लेती है और सारी दुश्वारियां, सारी मजबूरियां सब जन्नत सा महसूस होने लगता है..! इसी सपनों को संजोए जीवन को जिए जा रहा था..!

फ़रवरी महीने मे कश्मीर मे बहुत बर्फबारी होती है, 2 फरवरी 2010.... हाँ यही दिन था वो, जो मेरे मानस पटल पर शायद हमेशा अंकित रहेगा..! रात के 2 बजे बर्फीली रात मे अपने घर से निकल गया माँ के तलाश मे, या कह लो कि मंजिल की तलाश मे..!! करीब 40 किलो मीटर दूर मीरपुर जिले मे अम्मी अपने नए परिवार के साथ रहती थी..! फिरदौस मेरी खाला जान की बेटी, उसने मुझे सारा पता बता दिया था..! माँ से मिलने का ख्वाब बार बार मेरी आँखें भर दे रहा था..! पूरे रास्ते यही सोचता गया, कि बहुत सारी बातें करूंगा, अब्बू की शिकायत करूंगा, और ये भी बताऊँगा, कि नई अम्मी जब सऊदी गई थी तो मेरे अलावा सब के लिय उपहार लायी..! गले से लिपट जाऊँगा और साथ ले आऊंगा अम्मी को..! अगर साथ आने को नहीं मानी तो कहूँगा की मुझे ही अपने पास रख ले..! इसी उधेड बुन मे पता नहीं चला कि कब मीरपुर पहुँच गया..!!

सुबह के दस बज रहे थे। जब वहां फिरदौस के द्वारा बताए गए पते पर पूछते- पूछते पहुंचा। एक बुजुर्ग ने बताया कि वो हरे रंग का दरवाजा है, वही घर है। मैं खुशी खुशी दरवाजे की ओर आगे बढ़ा । तभी उस दरवाजे से एक सात-आठ साल का बच्चा बाहर आता हुआ दिखा...! मैंने उससे पूछा अम्मी कहाँ हैं। उसने घर की तरफ इशारा करते हुए अपने दोस्तों के पास चला गया जो बाहर उसका इंतज़ार कर रहे थे। मैं अंदर गया देखा कि माँ रसोई में थी कुछ काम किये जा रही थी। पहचानने में मुझे देर नहीं लगी क्योंकि माँ की एक तस्वीर मैं हमेशा अपने पास रखता था। मैं चुप था, माँ को देखते ही जुबान स्तब्ध हो गए, माँ ने फिर पूछा कौन है..? मेरे काँपते होठ ने कहा "सौकत" मेरा नाम सौकत । कौन सौकत..?? माँ ने फिर पूछा , मैं लगभग रोते हुए कहा आपका बेटा "अम्मी जान"। मुझे रोते देख वो चुप हो गई। इतने में एक हट्टा कट्ठा जवान पठान दरवाजे से आया। वो मेरी अम्मी का शौहर था। उसने मुझसे पूछा "ओये कोण है तू"- मैंने अपने बारे में सब कुछ बताया। पठान दिल का अच्छा था । उसने मेरी अम्मी से कहा कुछ खाने को दिया अपने बेटे को?? अच्छे से खातिरदारी करो इनकी..! ये कह के , वो किसी काम से बाहर चला गया। पर मेरी माँ के आँखों में मेरे लिए कोई स्नेह नहीं दिखा। एक माँ एक बेटे को खाना नहीं खिला रही थी बल्कि पठान के आदेश का पालन कर रही थी। मैं किसी की कोई शिकायत नही कर पाया अम्मी से, ये भी नही बता पाया कि बड़े ताऊ का बेटा मेरी किताबें फार दी और मुझे मारा भी। खाने के बाद अम्मी मेरे वहां से निकलने का इंतज़ार करने लगी..! उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की। मैं उनकी खामोशी को अपने तकदीर मे माँ का ना होना समझ रहा था..!! 

मैं जब वहां से निकला तो घर अब्बू के पास नहीं गया, क्योंकि वो जन्नत किस काम का जहाँ माँ ना हो। बस एक कभी ना पूरी होने वाली ख्वाइश को सीने में दबाये कि किसी दिन माँ आ के सीने से लगा लेगी,..! उस जन्नत को अलविदा कह दिया और आज आपके शहर में हूँ।

हुम् सब निःशब्द थे।

राहुल भूषण 

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