सोमवार, 3 अप्रैल 2017

क्या खोया क्या पाया...

Rahul kumar
New delhi,
8802969607

हू मै खुशनसीब या बदनसिबो का  शहंशाह .... 
हू मै सरफरोश या जनजीरो में हू जकरा .... 
तमन्ना थी आसमनो में उड़ान भरने की..... 
ख्वाइशें हजार थी चाँद के उस पार जाने की.... 
हमसफ़र भी साथ थी  हमनवा भी खास था... 
उसकी बाहो का एहसास था, सारा जमाना अपने पास था.... 
पर लगी किसी की नज़र शायद ....आए पतझर बहार मे तब...... 
उज़रने लगी वदिया , टूटने लगी डलिया.....हो गई मुहर्रम..... ईदगाह में तब..... 
टूटे सपने... छूटे अपने... बीते लम्हे..... कोरे वादे ....हो गए तन्हा जहां मे तब... 
एक उम्मीद आखिरी बची है अब....... लूट जाऊ या छू जाऊ ...... 

कुछ कर जाऊ या मिट जाऊ...... आए बसंत बाहर में तब.....! 










3 टिप्पणियाँ:

यहां 6 अप्रैल 2017 को 3:36 am बजे, Blogger Unknown ने कहा…

Kamal ka hai

 
यहां 8 अप्रैल 2017 को 10:45 am बजे, Blogger Unknown ने कहा…

उनके आने के इंतज़ार में हमनें,
सारे रास्ते दिएँ से जलाकर रोशन कर दिए,
उन्होंने सोचा कि मिलने का वादा तो रात का था,
वो सुबह समझ कर वापस चल दिए।....Rahul vatss...

 
यहां 8 अप्रैल 2017 को 10:55 am बजे, Blogger Teaching WINDOW ने कहा…

बहुत बहुत धन्यावाद........... Pls visit my blog....... . अगर दिल के करीब पहुँच जाउ तो जरूर साझा kaijie अपने दिल की बात

 

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